विश्व शांति दूत की उपाधि से विभूषित हुए गणाचार्य जी 40 वां दीक्षा दिवस मनाया
विश्व में हो शांति..
विश्व शांति दूत की उपाधि से विभूषित हुए गणाचार्य जी
40 वां दीक्षा दिवस मनाया, 108 वृक्षों का रोपण किया
शान्तिदूत नहीं पर शांतिपूत अवश्य हुं :- आचार्य श्री

देवास। तर्क रहित मैत्री, स्वार्थ रहित सेवा, युद्ध रहित विश्व, तनाव रहित परिवार, विवाद रहित बस्तियाँ की भावना से मानव जीवन में एक जाग्रति का नव निर्माण करने वाले पुष्पगिरी तीर्थ प्रणेता गणाचार्य पुष्पदन्त सागर जी महाराज के 40 वां मुनिदीक्षा दिवस भक्तों द्वारा धूमधाम से मनाया गया। जहाँ भक्तो ने आचार्य जी के पादप्रक्षालन कर उन्हें दीक्षा दिवस की शुभकामाएं देते हुए उनका आशीष ग्रहण किया। जहाँ आचार्य श्री जी ने भक्तो को आशीर्वचन देते हुए कहा कि शान्तिदूत कहकर आप ने मुझे अलंकरण करने की कोशिश की लेकिन में शान्तिदूत नहीं पर शांतिपूत अवश्य हुं। जिस संस्कृति में मेरा जन्म हुआ जिस परंपरा में पल बड़ा वे भगवान आदिनाथ से लेकर महावीर तक चली। जो मुझमें विश्व में शांति देने की भावना देने को जाग्रत करता है। जब तक मेरी चेतना शरीर में सांस है मैं वैसा ही रहूंगा। विश्व में शांति हो, मैत्री का भाव जग में फैले ये सदा से इच्छा रही है। इसी लिए आज आप ने मुझे सराह है।


इसी कड़ी में समस्त जैन समाज द्वारा गणाचार्य जी को समाज के वरिष्ठजनो द्वारा विश्व शांति दूत अलंकरण से नवाजा गया। उन्हें 40 किलो की स्टील सीट पर मुख्य अलंकरण प्रशस्ति व मूमेंटो प्रदान भक्तो द्वारा प्रशस्ति में बताया कि आचार्य श्री मानवता के महानायक, साम्प्रदायिकता से परे धार्मिकता के प्रकाशवान दीप, महावीर की अहिंसा को विश्व सभ्यता के रूप प्रदाता, पंचाचार संस्कार प्रदाता एवं विश्वशांति के पांच सूत्र प्रदाता आदि बातों को उल्लेख किया गया। विश्व शांतिदूत अकंकरण देश की जैन समाज, गुरु भक्तों द्वारा प्रदान किया गया। आचार्य श्री ने विश्व में शांति स्थापित हो इसके लिए शान्तिम…..शान्तिम….मंत्रो का भक्तो से उच्चारण भी करवाया। आचार्य श्री जी को जिनवाणी पब्लिक स्कूल व कॉलेज के बच्चो द्वारा 40 शास्त्र भेंट किये गए, 40 दीपकों से आरती की गई। आचार्य प्रणाम सागर जी, मुनि प्रगल्भ सागर जी, मुनि विप्रनन्त सागर जी द्वारा क्रान्तिकारी राष्ट्रसंत के शिष्य क्षुलक पर्व सागर जी महाराज सहित सभी भक्तो ने गणाचार्य जी के पादप्रक्षालन कर पुण्यार्जन किया।

जैनश्वरी दीक्षा दी गई
विहार के दौरान तीर्थ पर पधारे मुनि विप्रनन्त सागर महाराज के शिष्य ब्रमचारी अनिल भैया जी को क्षुलक दीक्षा दी गई जिनका नाम कारण गणाचार्य द्वारा प्रमेय सागर जी महाराज नाम रखा गया। जहां उनके गरूदेव द्वारा मंत्रोउच्चार के साथ संस्कार किये गए। इससे पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ सोनकच्छ प्रणाम धारा की महिला मण्डल द्वारा किया गया। स्कूल के बच्चो द्वारा मंगलाचरण किया गया। इस अवसर पर आसपास सहित दूरदराज से आये कई भक्त शामिल हुए।
Comments