पुष्पगिरी तीर्थ के प्रणेता गणाचार्य पुष्पदंत सागर जी का 40 वां दीक्षा समारोह कल
-नेपाल व भूटान से आएंगे राजदूत
– 40 वर्षो की साधना की होंगी यादें ताजा
– विश्व शांति की उपाधि से विभूषित किया जाएगा
देवास। आचार्य पुष्पदंत सागर जिनका जन्म 1 जनवरी 1954 को हुआ था। आचार्य विमल सागर की कृपा से 31 जनवरी 1980 को वह एक सागर के रूप में आये। आज इस सागर की लहर में आज समाजजन लाभान्वित हो रहे है। आचार्य पुष्पदंत सागर जी त्याग, तपस्या, साधना, समर्पण, से अपरिग्रह, अहिंसा, अस्तेय, सत्य और ब्रह्मचर्य का पर्याय बने है। शांति का संदेश उन्होंने सिर्फ देश ही नहीं वरन विदेशों तक पहुंचाया है। सिर्फ यही नहीं जैन संत के इतिहास में पहली बार समाधि उपरांत अपने शिष्य तरुण सागर को आचार्य पद दिया। ऐसे संत की मुनि दीक्षा को कल 31 जनवरी को 40 वर्ष हो रहे है, और आज भी वह अपनी आध्यात्मिक चेतना, ऊर्जा से हमेशा की तरह मुस्कुराते हुए सभी को आशीष दे रहे है।
कल 31 जनवरी को पुष्पगिरी तीर्थ के प्रणेता गणाचार्य पुष्पदंत सागरजी के 40 वें मुनिदीक्षा दिवस पर कई आयोजन होंगे। गणाचार्य को विश्व शांति दूत की उपाधि से विभूषित किया जाएगा। यह सम्मान जैन समाज गुरु भक्तों के साथ नेपाल के उपराष्ट्रपति के विशिष्ट सलाहकार व भूटान के सांस्कृतिक राजदूत देंगे। इस अवसर पर 40 वर्ष की साधना व 40 यादें ताजा होंगी। आयोजको ने बताया कि 40 दीपको से आरती होगी, 40 प्रकार के शास्त्र भेंट किये जाएंगे, 40 प्रकार के नवग्रह से सम्बंधित पौधे रोपे जाएंगे। 40 किलो की स्टील शीट पर मुख्य अलंकरण प्रशस्ति गुजरात से तैयार होकर आएगी, जिसे मुंबई में डेढ़ किलो चांदी से फ्रेमिंग किया गया है। इस आयोजन में देश विदेश से शिष्य, भक्त अनुयायी आएंगे। संगीतमय गुरुपूजन होगा, जो 40 वर्ष की साधना तो तरोताजा करेंगे।
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