16 दिनों 500 किमी की यात्रा कर पुष्पगिरी पहुंचेगे क्रांतिवीर मुनि प्रतीक सागर जी महाराज..

16 दिनों 500 किमी की यात्रा कर पुष्पगिरी पहुंचेगे क्रांतिवीर मुनि प्रतीक सागर जी महाराज
राजनीति में धर्म होना चाहिए मगर धर्म में राजनीति नहीं होनी चाहिए, किसानों की आवाज सुनी जाना चाहिए, उस पर राजनीति नहीं करना चाहिए
हमने पूर्व से ही भारतीय संस्कृति का अनुपालन किया होता तो आज कोरोना वायरस का सामना नहीं करना पड़ता : मुनिश्री प्रतीकसागरजी
देवास। भारतीय संस्कृति जो सारी दुनिया को देती आई है सारी दुनिया का संचालन किया है, लेकिन आज हमारी भारतीय संस्कृति कलंकित होती जा रही है, क्योंकि पाश्चात्य संस्कृति उस पर हावी होकर चल रही है। पाश्चात्य संस्कृति से बचाने का कार्य संत और ऋषियों के ऊपर है। क्योंकि जब पाप का अत्याचार बढ़ा तो नारायण कृष्ण जी ने गीता का उपदेश देकर अर्जुन के साथ खड़े हो जाते हैं और धर्म और अधर्म के बीच परिभाषित करते हैं। लेकिन सही काल में राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर नहीं आने वाले हैं। हमारे समाज में जो बुराई व्याप्त है उन बुराईयों से लडऩे के लिए हमें स्वयं ही राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर की प्रेरणा उनका संदेश उनका विचार लेकर हमें जीवंत होकर आगे बढऩे की आवश्यकता है। जिस दिन हम पाश्चात्य संस्कृति के चंगुल से बाहर निकलकर पूर्वी संस्कृति का उपयोग करेंगे तो पूर्वी संस्कृति हमारे जीवन के विज्ञान को बदलने में सहायक बनेगी। क्योंकि पूर्वी संस्कृति कभी दूसरे का अहित करने वाली संस्कृति नहीं रही है। उक्त बाते मुनिश्री गणाचार्य पुष्पदंत सागर जी महाराज के सुयोग्य शिष्य क्रांतिवीर मुनि प्रतीक सागर जी महाराज ने पत्रकार वार्ता के दौरान कही थी। उन्होनें बताया की वह 7 माह बाद अपने पूज्यगुरुवर का सानिध्य प्राप्त कर पुष्पगिरी में दर्शन करेंगे। इस हेतु मुनिश्री द्वारा सोनागिरि से लगभग 500 किमी की यात्रा तय कर नए वर्ष 1 जनवरी को तीर्थक्षेत्र पुष्पगिर पहुंचेगे।

     मुनिश्री गणाचार्य पुष्पदंत सागर जी महाराज के सुयोग्य शिष्य क्रांतिवीर मुनि प्रतीक सागर जी महाराज जो की भिंड जिले के निवासी रहे हैं जिनका बचपन का नाम विनोद था। उन्होनें 6 अप्रेल 1993 को सन्यास लेकर भक्ती के सागर में डूब गए थे। इसके बाद से लोगों के बीच रहकर मुनिश्री ने अपनी प्रवचन माला के माध्यम से लोगों को भक्ती के रस में डूबोकर रखा है। सोनागिरी सिद्धक्षेत्र से करीब 500 किलोमीटर की पैदल यात्रा 16 दिनों में तय करते हुए गुरूवार को मुनिश्री प्रतीक सागरजी महाराज का देवास में मंगल प्रवेश हुआ। वे आज पुष्पगिरी में होने वाले जन्म जयंती महोत्सव में शामिल होने के लिए पुष्पगिरी जाते समय देवास में प्रवेश करते हुए कुछ समय के लिए पत्रकारों से रूबरू हुए। इस दौरान उन्होंने पत्रकारों के सवालों के जवाब देते हुए कहा कि जीवमातृ की हत्या उनकी वजह से ना हो इसलिए हमारे अग्रजों ने पैदल चलना स्वीकार किया और मैं स्वयं भी वाहन का उपयोग ना करते हुए पैदल ही कई किलोमीटर की यात्रा करता हूं। हम संत हैं और हमें किसी प्रकार का मोह-लोभ नहीं होता है लेकिन हम जनकल्याण के लिए कभी-कभी स्वार्थी भी हो जाते हैं। क्योंकि हम भारतीय संस्कृति को जन-जन तक पहुंचाना चाहते हैं और हम स्वयं यदि यह काम करते हैं तो उपस्थिति लोगों तक ही बात पहुंच सकती है लेकिन आज मीडिया को बुलाकर मैं उनसे चर्चा इसलिए कर रहा हूं कि मुझे यह लालच है कि मेरी बात मीडिया के माध्यम से लाखों लोगों तक पहुंच सके। इसलिए लोकहित में कभी-कभी स्वार्थी होना भी लाभदायक होता है।

किसानों की आवाज सुनी जाना चाहिए, उस पर राजनीति नहीं करना चाहिए
       किसान हमारे भारत देश की जड़ है और अगर जड़ पुल्लवित और पुष्कित होगी तो देश का भी विकास होगा। हमारे देश में किसानों के ऊपर जो राजनीति की जा रही है, वह राजनीति नहीं की जाना चाहिए समस्या का हल ढूंढना चाहिए। और जो समस्या का हल खोजा जाएगा तो वह समस्या देश की समृद्धि में कारक बनेगी। आज अगर किसी की कोई पीड़ा है तो उस पीड़ा का समन करना सरकार का ध्येय होना चाहिए, न कि सिर्फ उस पर दूसरे तत्वों के द्वारा राजनीति की जाना चाहिए, क्योंकि देश तीथन का रिसव्य हो। मैनें सिर्फ दो ही उपदेश दिए हैं की भारत की संस्कृति में हमें आगे बढऩा है ऋषि बनो, या कृषि करो आज हमारे घर पल रहे हैं तो वह कृषि के माध्यम से ही पल रहे हैं। आज भारत देश अगर सुरक्षित है तो उसके पीछे किसान का महत्पवूर्ण स्थान है। आज 70 प्रतिशत भारत की आबादी किसानों का क्षेत्र है, इसलिए किसानों की आवाज को सुना जाना चाहिए, और उसके ऊपर राजनीति नहीं की जाना चाहिए।

 

राजनीति में धर्म होना चाहिए मगर धर्म में राजनीति नहीं
       मुनिश्री ने कहा की राजनीति में धर्म होना चाहिए मगर धर्म में राजनीति कभी नहीं होनी चाहिए। जिस दिन धर्म में राजनीति आ जाया करती है उस दिन धर्म का वास्तविक स्वरूप समाप्त हो जाता है, और जब राजनीति में धर्म आ जाता है तो वह नीति पूर्वक चला करता है। क्योंकि इस देश का राजा कुटिया में रहता है उस देश की प्रजा महलों में निवास किया करती है। जिस देश का राजा महलों में निवास करे तो समझ जाना चाहिए प्रजा के लिए कुटिया के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। इसलिए धर्म गुरू होने के नाते मैं देश की जनता से केवल एक ही अपील करूंगा की जब-जब पाश्चात्य संस्कृति के चंगुल में फंसे है तब-तब हमने विनाश की कगार पर गए है। जिस विनाश की कगार का आज हम सभी सामना कर रहे हैं।

भारतीय संस्कृति का का अनुपालन होता तो कोरोना वायरस नहीं होता
       हिंदू की व्याख्या करते हुए कहा कि हिंदूओं में जैनों से बड़ा हिंदू कोई नहीं है क्योंकि हिंदू यानि हिंसा ना होने दूं, और जैन संत तो अपने साथ पीच्छी भी इसीलिए रखते हैं कि जीवमात्र की हत्या उनकी वजह से ना हो। उन्होंने कहा कि पाश्चात्य संस्कृति की वजह से भारतभर को नुकसान हो रहा है। आज हम जिस कोरोना वायरस की बात कर रहे हैं जिसकी वजह से हम मास्क लगाकर दो गज की दूरी रखरखकर चल रहे हैं। अगर हमने पूर्व से ही भारतीय संस्कृति का अनुपालन किया होता तो शायद इस वायरस का सामना हमको नहीं करना पड़ता। क्योंकि जिस गर्म पानी पीने की बात है जैन धर्म आदिकाल से कहता आ रहा है उसी का अनुपालन आज हमें करना पड़ रहा है। जो दर्ज संस्कृति को हमारी संस्कृति कहती आई है की हाथ मिलाने की अपेक्षा हाथ जोडक़र एक दूसरे का अभिवादन करें और आज हम वहीं कगार पर आ गए की कोरोना वायरस के भय से कारण हाथ जोडऩा प्रारंभ कर दिया हमने पूर्व में ही भारतीय संस्कृति को अपना लिया होता तो शायद इन विडंबनाओं से बच जाते। यह भारत वह अध्यात्म देश है जिस सारी दुनिया को दिया है दुनिया से लिया नहीं है। चाहे गौवध हो चाहे मांस निर्यात हो, या भ्रूण हत्या हो, बलात्कार जैसी क्रियाएं हो यह भारत की संस्कृति के मिजाज में नहीं है, यह तो पाश्चात्य संस्कृति के मिजाज में हो सकती है। लेकिन भारतीय संस्कृति में यह कलंक का टिका है इसलिए देश के युवाओं का आव्हान करना चाहूंगा कि वे पाश्चात्य संस्कृति से ऊपर उठें। इसलिए डे के महत्व को कम करते हुए तीज त्योहारों को बढ़ावा देकर परिवारों में ही होटलों जैसी सुविधाएं दें लेकिन वातावरण शुद्ध रखें। तभी हमारी पीढिय़ां सुरक्षित रह सकती हैं।

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