मित्र वही श्रेष्ठ होता है जो निर्धनता में भी साथ दे : धर्माचार्य पाठक
मित्र वही श्रेष्ठ होता है जो निर्धनता में भी साथ दे : धर्माचार्य पाठक
देवास। मित्र वही श्रेष्ठ होता है जो अपने निर्धन मित्र को भी बराबरी का दर्जा देकर उसकी दिनहीन दशा को बदल कर सुख शांति से जीवन यापन करने के लिए प्रयत्न करें। जिसके पास अच्छा मन होता है। वही सबसे बड़ा धनी होता है। धन वाले के साथ तो सब है, लेकिन निर्धन के साथ बिरले ही रहते हैं। उसके साथ रहने में धनपतियों को संकोच होता है। धन होना अच्छी बात है। लेकिन अच्छा मन नहीं होगा तो भगवान की कृपा के पात्र नहीं हो सकते। इसलिए धन के साथ अच्छा मन होना बहुत जरूरी है। भगवान श्री कृष्ण स्वयं तीनों लोकों के स्वामी होने के बाद भी अपने दीन हीन मित्र से मिलने के लिए जिस प्रकार से महल से नंगे पैर दौड़ लगाई थी वह मित्रता की पराकाष्ठा थी।
आज ऐसे मित्र मुश्किल से मिलते हैं। यह विचार शुक्रवार को कृष्ण सुदामा प्रसंग में मित्रता की व्याख्या करते हुए मुखर्जी नगर बीमा रोड पर चल रही श्रीमद्ब भागवत कथा के दौरान धर्माचार्य पाठक ने व्यक्त किए। आयोजक मंडल के ओमप्रकाश कुमावत, अनिता कुमावत ने भगवान श्री कृष्ण, सुदामा की महाआरती कर पूजा अर्चना की गई। कृष्ण और सुदामा के भावमय प्रस्तुतीकरण ने श्रद्धालुओं का मन मोह लिया। बड़ी संख्या में शामिल होकर धर्मप्रेमियों ने कथा श्रवण की।
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