पंचामृत मनुष्यों को ग्रहण नहीं करना चाहिए, उसमें देवताओं का वास होता है : धर्माचार्य पाठक......
पंचामृत मनुष्यों को ग्रहण नहीं करना चाहिए, उसमें देवताओं का वास होता है : धर्माचार्य पाठक
देवास। पंचामृत पीने का अधिकार किसी मनुष्य को नहीं है। लेकिन चरणामृत पीने का अधिकार संपूर्ण सृष्टि में व्याप्त मनुष्य को है। पंचामृत में देवताओं का वास होता है। इसलिए पंचामृत मनुष्यों को ग्रहण नहीं करना चाहिए। अमृत रूपी उस पंचामृत को सोमरस की संज्ञा दी गई है, उपमा दी गई है। शास्त्रों के अनुसार देवता गीता रूपी सोमरस का पान करते हैं। सोमरस परमात्मा का ही स्वरूप है। वह अमृत मय है, लेकिन व्यसन के मार्ग पर चलकर युवा आज मदिरा को ही सोमरस समझ कर ओर उसका पान कर जीवन को नरक की ओर धकेल रहे। यह विचार गुरूवार को मुखर्जी नगर बीमा रोड पर चल रही श्रीमद्ब भागवत कथा के दौरान धर्माचार्य पाठक ने व्यक्त किए।
इस दौरान कृष्ण, रुक्मिणी का विवाह महिलाओं द्वारा हल्दी लगाकर व मंगल गीत गाकर संपन्न कराया गया। आयोजक मंडल के ओमप्रकाश कुमावत, अनिता कुमावत ने भगवान श्री कृष्ण, रूक्मणी विवाह की रस्म धर्माचार्य पाठक द्वारा मंत्रोच्चार कर विधि विधान से पूजन अर्चन कर पूरी की गई। भगवान श्री कृष्ण और रूक्मणी के मनमोहक प्रस्तुतीकरण ने श्रद्धालुओं का मन मोह लिया। मुख्य यजमान गोपाल पहलवान, छगनलाल पटेल, बनेसिंह कुमावत ने व्यास पीठ की महाआरती कर पूजा की बड़ी संख्या में शामिल होकर धर्मप्रेमियों ने कथा श्रवण की। कथा प्रतिदिन 12 से 4 तक आयोजित की गई है।
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